शैल सागर, डॉ. राजेश्वर उनियाल की सुंदर काव्यकृति है । आरंभ में ऐसा लगता है कि कवि ने एक काल्पनिक काव्यरचना की है, परन्तु जैसे-जैसे इसके अध्याय बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे कवि ने एक ओर हिमालय की महानता व उत्तरांचल का संपूर्ण दर्शन कराया है, वहीं साथ ही हमें सागर की गहराईयों तक भी पहुंचाया है । कहीं काल्पनिक, कहीं शाश्वत सत्य, कही भौगोलिक तो कहीं प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन करते हुए हमें आनन्द की गहराईयों तक पहुंचा दिया है । हिन्दी साहित्य के जगत में इस प्रकार की काव्य रचनाएं बहुत कम हुई है । परन्तु जब भी ऐसी रचनाएं दिखने को मिलती हैं तो इससे साहित्य जगत में हलचल सी मच जाती है । मुझे पूरा विश्वास है कि हिन्दी पाठक व साहित्य जगत शैलसागर का भी भरपूर स्वागत करेंगा ।