जगद्गुरू शंकराचार्य- शंकर के जीवन वृत को आधार बनाकर पण्डित जनार्दन राय नागर द्वारा लिखे गये दस उपन्यासों में यह ‘‘शंकर साक्षात्’’ है। इस उपन्यास का कथानक आत्म जन्य है। जिसमें ज्ञान से ज्ञान की, सिद्धियों से सिद्धियों की टकराहट है। सम्पूर्ण चित्र में ‘‘मैं’’ की खोज है। परम् शिवत्व के प्रथम दर्शन शंकर को कंदरा में होते हैं। शंकर गुरू गोविन्दपाद के साथ ऊपर उठता है। शंकर को विश्वनाथ के दर्शन करवाये। शंकर पूर्णत्व के अन्तिम सोपान पर सदा के लिए स्थित हो गये। विश्वोत्तीर्ण के साथ विश्वात्मा हो गये। पराशक्ति से तादात्म्य लाभ प्राप्त कर वे पहुंच गये, जहां पहुंचना था- ‘‘शंकर से शंकर साक्षात् हो गये’’
इस उपन्यास में ज्ञान व भक्ति का समन्वय है। इसमें लेखक-ज्ञानी भक्त नहीं होता- इस भ्रान्त धारणा का खण्डन करते हैं। शंकर का ज्ञान, क्रचक्र का अज्ञान, कुमारिल्ल का शिव संकल्प, मण्डन का अभिमान उपन्यास को विचार मंथन से आलोकित करता है। इस प्रकार यह उपन्यास अनिर्वचनीय, अकथनीय, निरामय, निर्वाणमय, अपार, आरपार, केवल एकमेव एकाकार, रूपहीन, नामहीन ‘‘ब्रह्म’’ साक्षात्कार की पथगाथा है।