आज के युग में, जहाँ विकास को केवल GDP, अवसंरचना और प्रतिस्पर्धा से मापा जाता है, स्थितप्रज्ञ – विकसित भारत की आधारशिला यह प्रश्न उठाती है कि क्या भारत बिना आत्मिक परिपक्वता के सचमुच “विकसित” हो सकता है? यह पुस्तक बताती है कि असली प्रगति बाहर की नहीं, भीतर की भी होनी चाहिए—एक ऐसा मानस जो स्थिर, सजग, करुणामय और नैतिक हो।
लेखक अनुपम श्रीवास्तव वेदों के सनातन ज्ञान, गीता के स्थितप्रज्ञ पुरुष और पुराणों की प्रतीकात्मक शिक्षाओं को आधुनिक संदर्भों में नया अर्थ देते हैं। वे दिखाते हैं कि हिन्दू परंपराएँ केवल अनुष्ठान नहीं, बल्कि ऐसी पद्धतियाँ हैं जो मस्तिष्क को एकाग्र करती हैं, आत्मानुशासन सिखाती हैं और जीवन दृष्टि को परिष्कृत करती हैं।
यह पुस्तक हर उस व्यक्ति के लिए है जो राष्ट्र निर्माण में भागीदार बनना चाहता है—माता-पिता, शिक्षक, व्यवसायी और साधक सभी। स्थितप्रज्ञ – विकसित भारत की आधारशिला हमें भीतर झाँकने और यह समझने का आमंत्रण देती है कि विकसित भारत की असली नींव स्मार्ट सिटी या डिजिटल इंडिया नहीं, बल्कि जागरूक, सजग और नैतिक नागरिक हैं।