"तलाश" जीत-हार, नायक-खलनायक की हदों को तोड़, दो ज़िंदगियों की गहराई में उतरती है, जो अनकही ख्वाहिशों और खुद को तलाशने की जद्दोजहद में एक-दूसरे से जूझते रहते हैं।
सार्थक और सना के रास्ते आपस में मिलते हैं और फिर बिखरते हैं। हर मुलाकात, हर बिछड़ाव उनके दिलों में एक गूंज छोड़ जाती है... यह समझाने के लिए कि कुछ रास्ते कभी खत्म नहीं होते... और कुछ ख्वाहिशें हमेशा अधूरी ही रहती हैं।
यह एक ऐसा सफ़र है, जो दिखाता है कि प्यार कैसे अनजानी जगहों में बस जाता है, भूली हुई यादों के कोनों में ठहर जाता है। आखिर में, यह हमें वो आईना दिखाता है, जिसमें हम अपने अंदर के अधूरेपन को पहचानते हैं... और ख़ुद को तलाश पाते हैं।
इन्हीं फैसलों की खामोश गूंज और उन अधूरी जगहों के बीच एक सवाल बाकी रह जाता है, जो हम सभी कभी न कभी ख़ुद से पूछते हैं -
"वो सब जो हमने खो दिया वो अगर लौट आए... तो क्या सब कुछ पहले सा हो जाएगा?"
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