नमन वीणा पाणी की जिनकी दी हुई मानस भाव तरंगे निःसृत हो कर आप सुधि पाठकों के हाथों में तरंगिनी भाग - 3 के रूप में इठलाती, लहराती हुई पहुँच गयी।
तरंगिनी भाग-3 मेरी दो हिन्दी काव्य धाराओं - तरंगिनी भाग - 1, तरंगिनी भाग - 2 तथा दो उर्दू अदब की पुस्तक - इन्दु की शायरी भाग-1, इन्दु की शायरी भाग-2 के बाद पांचवां काव्य संग्रह है।
मेरी तरंगिनी क्या है, प्रेम समेकित गंग है, इसमें प्रेम का रूप उछाल पर है - प्रकृति प्रेम, ईश्वर प्रेम, देश प्रेम, पारिवारिक प्रेम, मानव से मानव का प्रेम, कृष्ण-राधिका प्रेम, मीरा - मुरली वाला प्रेम, अर्थात विभिन्न सरस छन्द विधाओं में बस प्रेम ही प्रेम समाहित है।
विभिन्न प्रकार के मात्रिक और वार्णिक छन्दों में लिखी गयी इस पुस्तक की रचनायें हिन्दी प्रेमियों और काव्यरसिकों को निश्चय ही प्रेममय कर देंगी यह मेरा विश्वास है।
नवाकुंर काव्य सृजनकर्ताओं के लिये यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी होगी क्योंकि रचनाओं पर छन्दों के नाम भी दिये हुये हैं।
अन्ततः छन्दों के जानकार पाठकों से विशेष अनुरोध है कि यथोचित प्रयासों के बावजूद छन्दों में कहीं कहीं टंकण मे गलती या बेध्यानी के कारण मात्रात्मक या वर्णात्मक भूलें हो सकतीं हैं तो भिज्ञ पाठक गण उसे सुधार कर पढ़ने की कृपा करेंगे।
शुभकामना के साथ —
- इन्दु -
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