 
                        
                        यह किताब अनुज सुब्रत की बेहतरीन कविताओं का संग्रह है, जिसमें 'सुब्रत' की कविताओं में एक अलग ही दुनिया का ज़िक्र, एक अलग ही नयापन और हिंदी और उर्दू का एक अनूठा-सा ज़ायक़ा मिलता है। सुब्रत की यह कविताएं आमतौर पर दर्द और इश्क़ से ताल्लुक़ रखती है, इन कविताओं में हर उस कोने का ज़िक्र मिलता है जहाँ तक प्रेम का प्रकाश है और उस अंधेरे का भी ज़िक्र मिलता है जहाँ प्रेम का प्रकाश नही सिर्फ दर्द है और साथ ही एक अकेलेपन की भी बात मिलती है।
जिसका एक अनूठा उदाहरण है, 
"सब कुछ छूटा हुआ है 
बचपन हिज़्र-सा हुआ है।  
हर कोई जा रहा है इस जहां को छोड़ के 
लगता है अंबर में कोई मसीहा हुआ है।
  
ममता में ग़ैर माँओं के पैर क्या छुए मैंने 
उनको लगा उनका बेटा मौत-सा हुआ है। 
चाहत थी खिलौनों की, बचपन में हमे 
अब जवानी में उनसे बैर कैसा हुआ है।"