बड़ी कक्षा को पढ़ाते हुए मैंने अनुभव किया कि बच्चे पत्र लिखना भूल गए हैं. इसलिए एक बार बच्चों को कहा कि अपने माता या पिता को पत्र लिखे. जिसमे उनके त्याग, श्रम और आपकी परवाह का उल्लेख हो. फिर उसे अपने माता-पिता को दे दे.
दूसरे दिन छात्र-छात्राओं की प्रतिक्रिया अभूतपूर्व थी. उनका माता-पिता के प्रति और माता-पिता का उनके प्रति नजरिया बदल गया था.
आप किसी को 'धन्यवाद' कह कर देखिए. उसके किसी काम की प्रशंसा कर के देखिए. उसके चेहरे के भाव बदल जाएंगे. वहां पर आपको हसीन मुस्कुराहट दिखाई देने लगेगी.
पत्र यही करते हैं. उनमें लिखे- प्रशंसा, सराहना, किसी के त्याग को आपके द्वारा अभिव्यक्त कर देते हैं. इससे 'उन्हें' अपने होने का अच्छा एहसास होता है.
इसी एहसास की आप पत्र द्वारा दूसरे को खुशी दे सके, इसी प्रयास को गति देने के लिए पुस्तक में पत्र संकलित किए गए हैं. यह आपका पत्र तो नहीं हैं. पढ़ कर देखिएगा.