अपनी कहानी की कुछ लिखावत मैंने अधूरी रहने दी है क्यूंकी कुछ बातें है जो जहां में ही तो बेहतर है अगर वो सामने आ गई तो इंकलाब की जग कहीं ईश न लिख दन इस्की भी गुस्ताकी मेरे मन को परेशान कर रही है में जनता हुं की मैंने जो भी लिखा है वो अपने अखिर वक्त में लिखा है,प्रति एक फौजी की कहानी में अखिर वक्त की दुआ तबी आ जाति है जिश दिन वो अपने देश की सेवा से मुकर जाए ,पर मुझे गर्व है की में कभी नहीं मुकरा,अगर मेरे इश्क की दुआ नाकाम रहे तो मेरी साँस तब भी पैगाम लिख जाएगी पर अगर वो इंकलाब न लिख पाए तो रूह की दुआ मार्ने के बाद भी कभी खुद को एक फौजी नहीं कह सकेगी...
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