जज़्बात :
राबता है, दिल से रूह का ,
माहेरु है, है सुरूर सा ,
है पावन , है गुरूर भी
ये है ख्वाइश , है सुरूर भी ।
ज़र्रा ज़र्रा इस ज़रिया की बनावट है ,
कायनात!! जज़्बातों की ही तो सजावट है ।
जज़्बात है , तो ही ज़िंदगी है ,
जज़्बात हैं, तो ही हर खुशी है ।।
खुशियों के सिलसिले से खामोशीयों की खुशनुमा गिरफ्त , ये जज़्बात ही तो हैं , जो हमें जोड़े रखते हैं ।
इक दूजे के वास्ते जीना गर ज़िंदगी का मायना हुआ , तो जज़्बात वो आईना है , जो हमें खुद से खुदी तलक की हर वो मंज़िल तय करने को बेकरार करती है ।।
कुछ इस तरह से कोशिशें की है , हमने इन जज़्बातों के सफर को समेटने की।
आइये
लुत्फ उठाइये इन झिलमिल से, मखमली जज़्बातों के लहरों का ।
"ज़िक्र-ए -जज़्बात" - सौगात हैं इन सबका,
यानी आपका हमसे ,हमारा आपसे राबता उर्फ ज़िक्र-ए -जज़्बात हमारा ।।