हाँ, हाँ , मैं मर चुका हूँ । मैं सबके लिए एक लाश के सिवा कुछ भी नहीं । मेरी अर्थी जीते-जी निकाल दी गई । मेरे अरमानों की अर्थी , मेरे ख्वाबों की अर्थी --- । आज मेरी लाश पर रोने आए हैं आपलोग । नहीं--- नहीं । मेरी लाश पर कोई रो नहीं सकता । मेरी हत्या करने में आप सभी का हाथ है । सबने मेरी भावनाओं के साथ खेला है --- मेरी भावनाओं का गला घोंटा है । नहीं बेटे, नहीं । ''ऐसा मत कहो , कभी-कभी बेटे को भी बाप को माफ कर देना चाहिए ।'' कहते हुए रमन किशोर सौरभ के पाँव में झुकते चले गए । । एक ऐसे इंसान की कहानी जिनकी भावनाओं का गाला उनके अफ्नो ने हीं घोंट डाला । वह जो उनके लिए ही जी रहा था , पर, वे उसे गलत समझ रहे थे । आखिर क्यो ? जानने के लिए पढे --- उपन्यास --- मृत्यु
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