आज, मानव जीवन इच्छाओं और स्वार्थी जरूरतों की कभी न खत्म होने वाली दौड़ का हिस्सा है। पितृत्व बच्चों की अनावश्यक इच्छाओं को पूरा करने का केंद्र बन गया है। आज यहां हर कोई अनंत इच्छाओं और अपूर्णता का रोगी है। यह पुस्तक एक ऐसे व्यक्ति की काल्पनिक कहानी के बारे में है जो अपने परिवार की इच्छाओं को पूरा करने के लिए जीवन भर संघर्ष करता रहा और अंत में वह खाली हाथ ही रहता है।