अन्तस्ताप वह तरल लावा है जो मन के किसी कोने से स्रावित होकर पूरे शरीर में संचरित हो जाता है। यह कभी हमारे रक्त में उबाल लाता है तो कभी इसकी तपिश के सामने हमारी नशों में बहता हुआ रक्त ठंडा प्रतीत होने लगता है। यह कभी हमारे मनोबल को तोड़ता हेै तो कभी हमारे इरादों को चट्टान की तरह मजबूत भी बना देता है। रक्त संबन्ध तथा भावनात्मकता के आधार पर बने रिश्तों में प्रेम, धैर्य, ईमानदारी, समर्पण, सहयोग, विश्वास, सामंजस्य आदि भावों की कमी ही प्रायः इसकी उत्पत्ति के मूल कारक होते हैं।
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