यह पुस्तक उन सबके लिए है जो जीवन में भक्ति और प्रेम को समकक्ष स्थान देते हैं। भक्ति में प्रेमी हो जाना तथा प्रेम में भक्त हो जाना ही भावना की उच्चतम अवस्था है। समर्पण, त्याग और श्रद्धा, ये तीनों जीवन के आधार स्तम्भ हैं। भारतीय संस्कृति सदैव से बुद्धि पर भावनाओं के अंकुश को बल देती रही है। विद्या तथा अविद्या दोनों को जानना आवश्यक है, सम्भूति तथा विनाश दोनों को ही समझ लेना उचित है क्योकि किसी एक को ही जानने पर कल्याण संभव नहीं हैं। भावनाएं मनुष्य को अन्य प्रजातियों से भिन्न बनाती हैं। भावों का होना तथा उनका अभिव्यक्त हो पाना दोनों अलग अलग बातें हैं। किसी भी भाव की प्रांजल अभिव्यक्ति सिर्फ काव्य से ही संभव है और मनुष्य में काव्य - संस्कार का होना स्वयं में सौभाग्य है। इस पुस्तक में मैंने आप सभी की भावनाओं को शब्द देने का प्रयास किया है। इस पूरी पुस्तक में आपको विभिन्न रसों का आस्वादन करने का अवसर मिलेगा। जिस प्रकार विभिन्न प्रकार के गुणों, रंगों और सुगंधों से युक्त फूलों का गुलदस्ता अकेले फूल से सुन्दर और मनहर होता है उसी प्रकार यह पुस्तक किसी भी रस विशेष पर केन्द्रित न होकर आपको सभी प्रकार के रसों से आनंदित करेगी।
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