"चाँद रातें और बोझिल दिन" पाँच सालों के अनुभवों का संग्रह है, जो महामारी, संघर्षों, पारिवारिक त्रासदियों और नए जीवन के बीच बीती धड़कनों को समेटता है। यह मुक्तछंद में गाँव से शहर की यात्रा कराता है और ग़ज़लों में टूटे ख़्वाबों का दर्द बयान करता है। यह आत्मकथ्य, सामाजिक रिपोर्ताज और एक प्रेम पत्र है, जो कहता है: "अभी बहुत कुछ शेष है—देखना, कहना, जीना।" पृष्ठ पलटें और अपनी रातें यहाँ पाएँ।
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