जब सत्ता का नशा किसी व्यक्ति छा जाता है तब उसे ऐसा लगने लगता है कि वो सौरमंडल के सूर्य की तरह पूरे विश्व का केंद्र है और पूरी दुनिया उसी के चारो ओर ठीक वैसे हीं चक्कर लगा रही है जैसे कि सौर मंडल के ग्रह जैसे कि पृथ्वी, मांगल, शुक्र, शनि इत्यादि सूर्य का चक्कर लगाते हैं। न केवल वो अपने हर फैसले को सही मानता है अपितु उसे औरों पर थोपने की कोशिश भी करता है। नतीजा ये होता है कि उसे उचित और अनुचित का भान नही होता और अक्सर उससे अनुचित कर्म हीं प्रतिफलित होते हैं।कुछ इसी तरह की मनोवृत्ति का शिकार था दुर्योधन। प्रस्तुत है महाभारत के इसी पात्र के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालती हुई कविता “दुर्योधन कब मिट पाया” का प्रथम भाग।
Sorry we are currently not available in your region. Alternatively you can purchase from our partners
Sorry we are currently not available in your region. Alternatively you can purchase from our partners