युवा पाठक को समर्पित प्रस्तुत पुस्तक "एक लड़की और उसकी चाय " में लेखक ने चाय की मिठास से सहसा उपजे अंतरंग भाव को रेखांकित करने का प्रयास किया है , जो कालांतर में बहुधा शनै:शनै: प्रणय भाव में रूपांतरित हो जाया करता है । हालांकि , कतिपय कारणों से बढ़ते समय के साथ-साथ परस्पर प्रणय भाव के घटते जाने अथवा विलोपित हो जाने की स्थिति में एकतरफा प्रणय निवेदन मर्यादा की सीमा रेखा के घेरे में रहने के चलते तिरस्कृत होकर प्रणय पीड़ा का साक्षी बन जाता है ।
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