गीता प्रवचन कार्यकर्ताओं के सामने दिए गये हैं और इसमें आम जनता के उपयोग की दृष्टि रही है | यहाँ तात्विक विचारों का आधार छोड़े बगैर , लेकिन किसी वाद में पड़े बिना ही, रोज की कामों का ज़िक्र किया गया है | यहाँ श्लोकों के अक्षरार्थ की चिंता नहीं, एक एक अध्याय के सार का चिंतन है | शास्त्र - दृष्टि रखते हुए भी शास्त्रीय परिभाषा का उपयोग कम से कम किया गया है | मुझे विश्वास है कि हमारे गाँव वाले भाई बहन भी इसमें अपना श्रम परिहार पाएँगे |
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