ये पुस्तक समर्पित है भारतीय दर्शन को जिसने विश्व को कर्म के सिद्धांत दिए।
"कर्मा" कर्मों की कहानी है। इंसान के अच्छे और बुरे कर्मों की, और मानव जीवन पर पड़ने वाले उनके प्रभावों की।
एक बीस वर्षीय युवांगना मरना चाहती है। उसके जीने की इच्छा समाप्त हो चुकी है। अपनी नियति की तलाश मे वो लंदन से भारत आती है।जहां उसकी मुलाकात उसके अतीत से होती है जो कि काला और दागदार है। और जिसकी कालिख उसके वर्तमान को भी धूमिल कर रही है।
क्या वो अपने अतीत के रहस्य को कभी जान पायेगी?
क्या वो कर्मों के बंधन से कभी मुक्त हो पायेगी?
वो कौन सा रहस्य है जिसने कई जिंदगियों को बदल कर रख दिया था?
अपनों से बिछड़ चुके एक साधारण युवक की असाधारण कहानी जो नियति और प्रारब्ध के बीच संघर्षरत है।
प्रेम मे पागल युवक की कहानी जिसे अपने प्रेम की चाह है, पर नियति उसे उसके प्रेम से दूर ले जाती है।
क्या उसे अपना प्रेम मिलता है?
घृणा, लालच, विश्वासघात, मित्रता, विछोह और प्रेम से परिपूर्ण, भावनाओं की एक ऐसी यात्रा जो मानव जीवन पर कर्म और विकर्म के प्रभाव को समझाती है।
पेशे से इंजीनियर, 1982 मे पैदा हुये नवीन कुमार मूलतः जगदलपुर, छत्तीसगढ़ के निवासी हैं।
इंजीनियरिंग मे स्नातक और प्रबंधन मे स्नातकोत्तर नवीन कुमार उदयमान लेखक और कवि हैं। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न, कलम के धनी, नवीन जी, मानवीय भावनाओं को अपने लेखनी के माध्यम से कागज पर उकेरने मे सिद्धहस्त हैं। नवीन कुमार, काव्यात्मक भाषा शैली और दमदार लेखन से अपने पहले काव्य संग्रह "परिचय विहीन" और दूसरी प्रकाशित किताब "प्रेम कहानी" से पाठकों के दिलों मे जगह बना चुके हैं।
एक इंजीनियर से कवि और लेखक का सफर तय कर चुके नवीन की तीसरी प्रकाशित किताब है "कर्मा"।
"कर्मा", कर्मों की कहानी है। "कर्मा" कर्म और उसके प्रतिफल की कहानी है। घृणा, लालच, विश्वासघात, मित्रता और प्रेम से परिपूर्ण, भावनाओं की एक ऐसी यात्रा जो मानव जीवन पर कर्म और विकर्म का प्रभाव समझाती है।
नवीन जी के शब्दों मे "कर्मा" का लिखना वैसे ही है जैसे भाव विभोर होकर पूरी आस्था और समर्पण के साथ उस आदि और अन्नत, विराट सत्ता को नमन करना जो इस अखिल विश्व का संचालन कर्ता है। जिनसे कर्मों का प्रारंभ होता है और जिनमें कर्मों का अंत।