गीता से हम श्री मदभागवत गीता का विषय ही समझते हैं | वह तो अपने आप में ही एक पूर्ण ग्रंथ है | उस ग्रंथ के ज़रिए किसी भी व्यक्ति जीवन को सजाया और सँवारा जा सकता है | उस ग्रंथ के अतिरिक्त और भी कई संकलन में गीता हमारे जातीय संस्कृति में समय समय पर पनपता रहा और विकसित होता रहा | उन संकलनों को हम भुला ही चुके हैं | किसी शास्त्रीय व्याख्यान में शायद ही उन संकलनों पर चर्चा होते हों |
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