परमशक्ति के रूप, किसी भी धर्म जाती स्थान से बंधे हुए नहीं हैं। किस मनुष्य को कब, क्या, कहाँ किसकी जरूरत, यह वह बख़ूबी जानता है।
हम इंसान पैदा होते ही धर्म बंधन में हो जाते हैं, पर जब उस शक्ति का आशीर्वाद होता है तो उसका एक रूप आ के हमे थामता है जिसे हमारे दुनियावी धर्म से कोई लेना देना नहीं।
ये कृष्ण प्रेम इक सिख धर्म में जन्मी एक स्त्री का, जिसे खुद विश्वास नहीं हुआ,कि कब वह कृष्ण प्रेम में आयी और क्यों? सारी उम्र अपने धर्म का पालन करने वाली, कब परमशक्ति के धर्म में उतर आयी, बेख़बर थी।
पर इतना ही समझ पायी की, एक इंसान का भाव तय करता है कि उसके लिए कौन सा रूप ईश्वर का पूजने योग्य।
ईश्वर का हर रूप पूजने योग्य, बस आप किस भाव उतरे, ये मायने।
कृष्ण हमेशा से प्रेम रूप सौन्दर्य से परिपूर्ण रहे, और यह स्त्री ईश्वर के प्रेम में विलीनता के इन्तेज़ार में।
सारी ब्रह्मांडीय शक्तियों, देवता, सुर, असुर,और आदि शक्ति के आशीर्वाद के साथ इस जीवन को कृष्ण प्रेम के साथ समर्पण की तैयारी में।
कृष्ण प्रेम वैराग्य बिना संपूर्ण नहीं। हर पल समर्पण के भाव के साथ विलीनता की ओर अग्रसर।
बाइबल, कुरान, गुरु ग्रंथ साहब का समावेश कृष्ण प्रेम के साथ इस महाकाव्य में।
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