बातचीत के क्रम में ये ज्ञात हुआ कि बाबा एक स्कूल के रिटायर्ड शिक्षक थे। पेंशन मिल रहा था। पत्नी गुजर चुकी थी। उनका एक बेटा सम्पन्न व्यवसायी था। अपनी पत्नी के साथ खुशी पूर्वक जीवन यापन कर रहा था। एक बेटी थी, उसकी शादी एक सरकारी मुलाजिम से हो चुकी थी। दुनिया की तमाम जिम्मेदारियों से मुक्त और पेंशन के द्वारा आर्थिक रूप से स्वतंत्र, बाबा भारत की यात्रा पर निकल पड़े थे।
उनका आध्यात्मिक प्रवचन जारी था इधर ट्रेन स्टेशनों पे रुकती, फिर बढ़ जाती। बाबा बीच बीच में गाने को गुनगुनाने लगते, फिर तंत्र मार्ग के रहस्यों को खोलने में लग जाते। यात्रियों के चेहरे पे विस्मय का भाव ज्यों का त्यों बना हुआ था।
एक नन्हे से बच्चे को ये सारी बातें समझ नहीं आ रही थी। कौतुहल वश पूछे गए उस नन्हे से बच्चे के प्रश्न ने बाबा जी की प्रवचन की श्रृंखला को तोड़ डाला। अब केवल ट्रेन की आवाज ही सुनाई पड़ रही थी। ट्रेन में सन्नाटा था।
बच्चे ने पूछा था, बाबा जी आपकी कौन सी कुंडली जगी हुई है?
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