मेरी चित्कला कोरे कागज पर शब्दों की माला पिरोती है। गृहणी हूँ अतः प्रत्येक लेखन में कहीं खुबसूरत जिन्दगी के अहसास हैं तो कहीं रिश्तों की खुशबू है। कहीं तन्हाईयों का आलम है तो कहीं इश्क की दीवानगी। कुल मिलाकर भरपूर रंगों का इन्द्रधनुष है मेरे लफ़्ज़ों का गुलदस्ता में।
स्वतन्त्र लेखन में भावनात्मक परिपेक्ष का महत्वपूर्ण योगदान होता है। अतः समाज के प्रत्येक भाग को समझने और आपको बताने की कोशिश करती हूँ। आम पाठक को मेरी कवितायें आसानी से समझ में आयें इसलिये सरल भाषा का ही प्रयोग करती हूँ।
दोस्तो मेरी सभी पुस्तकों का कवर डिजाईन मेरी बेटी डा० सुरभि ने किया है।
शब्दों के ख़ियाबां में क़लम से निकले फूलों का बागीचा है मेरी पांचवी पुस्तक। मेरा लेखन मेरे दिल का आईना है। जब भी मेरी चित्कला कोरे कागज़ पर चलती है वह अपने आप ही विषय चुनती है कि क्या लिखा जाये। वैसे मैं स्वतन्त्र लेखन ही पसन्द करती हूँ क्योंकि यहां हम लेखन के भाव को विस्तार देते हैं। लेकिन इस पुस्तक में मैनें गज़लों का संकलन किया है।जो कि कहीं खुबसूरत ज़िन्दगी के अहसास हैं तो कहीं रिश्तों की खुशबू है। कहीं तन्हाईयों का आलम है तो कहीं इश्क की दीवानगी। कुल मिलाकर भरपूर गुलज़ार चमन है मेरी गज़ल और नज़्म में।
उम्मीद करती हूँ आप सभी पाठक गण मेरी पुस्तक को भी आफ़ताब की तरह चमकायेंगे। धन्यवाद सहित आपकी अपनी उर्मिला श्योकन्द ।
मिल जाये आसमाँ ख्वाब हमने देखा है
आपके और मेरे बीच आस की रेखा है
तारीफ़ चाहे ना मिले ताली की आवाज से
बुरा भी ना कहे कोई जो अक्सर हमने देखा है