अहम ब्रह्मस्मि -पुस्तक ''मैं मैं ही रहा''- मैं कैलाशी रहा, मैं मैंने जीवन के मूल अर्थ को पहचानने का प्रयास किया है और अनुभव को पाठकों के साथ साझा करने का प्रयास किया है । जीवन में हम तब तक परम आनंद प्राप्त नहीं कर सकते जब तक हम अपने अस्तित्व को समझ नहीं लेते । सृष्टि में सभी जीव अपने किसी न किसी मूल उद्देश्य को लेकर सृष्टि द्वारा पल्लवित और पुष्पित किए गए हैं। उसे यह समझने का प्रयास करना चाहिए कि उसका जीवन किन मूलभूत अनंत उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए है। यदि वह अपने होने के उद्देश्य को नहीं पहचानता नहीं जानता और अनुभव नहीं करता तो उसका जीवन वास्तविक अर्थ में अभिव्यक्त नहीं है।संसार में सभी इस जद्दोजहद में लगे हैं कि उनके होने का उद्देश्य क्या है ? परंतु कोई भी स्वयं को पहचान नहीं पा रहा है क्योंकि वह दूसरों को समझने और दुनिया को देखने- समझने में ही व्यस्त हैं। जबकि आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने आप को पहचाने, यदि हमने स्वयं के दर्शन कर लिए तो हम सब कुछ जान लेंगे, सब कुछ पा लेंगे। हमें इधर-उधर भटकना छोड़कर स्वयं को स्वयं से तलाशना और पहचानना प्रारंभ करना चाहिए और अपने अस्तित्व के उद्देश्य को समझना चाहिए । तभी हम सही अर्थों में कैलाशी हैं।यह दुनिया मात्र एक आभासी दुनिया है । हमारी लड़ाई अपने आप से हैं।हमारी जीत और हार अपने आप से हैं।मुझे मुझसे ही जीतना है मुझे मुझको ही हराना है तभी मेरी असली जीत है। मुझे मुझको ही खोजना है मुझे मुझको ही पाना है यही मेरी असली खोज हैं।मुझे मैं से भागना नहीं मुझे मैं को ही पहचानना हैं यही मेरी असली पहचान हैं। मैं ही ॐ ....मैं ही कैलाशी .....मैं ही मैं हूँ.....
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