कविता किसने बेहतर कही? और जिसने भी कुछ बेहतर कहा, क्या वह कविता नहीं हुई? बारिश की पहली बूंद, तपती गर्मी में पसीने का पहला कण, प्रेम का पहला क्षण या बच्चे की पहली किलकारी - सब कविताएं हैं। मगर भाव की इस उच्चता पर उसकी जटिलताओं में आप कितनी सरलता से जाते हैं, वह रचना का आधार बन जाती है। कोई भी रचनाकार अपनी सार्थकता इन्हीं रूपों में तलाशता है। उसकी अभिव्यक्ति के रूप निजी विलक्षणता से आकार लेते हैं। पूनम सूद की इन रचनाओं में भी एक कोमल किंतु कठोर वस्तु सत्य की झांई है। सिर्फ स्त्री, सिर्फ प्रेम, सिर्फ क्रोध या सिर्फ अंतर्विरोध की एकांगी अवधारणा से उठकर ये समग्रता में उनके अनुभवों का विस्तार करती हैं। कहीं एक चुभन है, कहीं संतोष और कहीं अदम्य जिजिविषा की फलश्रुति! व्यक्ति और समाज दोनों के संदर्भों से हिली-मिली ये रचनाएं जीवन की सहज कामना से भरपूर हैं।
- यशवंत व्यास
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