नाटककार मोहन राकेश ने व्यक्ति स्वातंत्र्य से विचलन के परिणामों को पारिवारिक विघटन, संबंधों के टूटन, आपसी अलगाव और अजनबीपन के रूप में प्रस्तुत किया है। पुस्तक में दोनों ही दृष्टियों के सकारात्मक-नकारात्मक पक्षों को निष्कर्ष रूप में रखा गया है, ताकि मोहन राकेश के नाटकों की सकारात्मकता और सृजनात्मकता को स्पष्ट किया जा सके । मोहन राकेश के नाटकों की विशिष्टता यह है कि इनके नाटक , व्यक्तिवाद का चरम दिखाकर व्यक्तिवाद से व्यक्ति स्वातंत्र्य की ओर जाने के लिए प्रेरित करते हैं, लेकिन इनके नाटकों का व्यक्तिवाद और व्यक्ति स्वातंत्र्य के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन नहीं हुआ है। प्रस्तुत पुस्तक मोहन राकेश के नाटकों का व्यक्तिवाद और व्यक्ति स्वातंत्र्य के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन कर इस कमी को पूरा करता है और इस दिशा में नये शोधों के लिए द्वार खोलता है। पुस्तक में प्रथम बार व्यक्ति स्वातंत्र्य की सम्यक विवेचना की गई है, जो किसी ने आज तक नहीं की है । इस पुस्तक में व्यक्ति स्वातंत्र्य के संदर्भ में हिन्दी साहित्य की रचनाओं का विश्लेषण हुआ है। मोहन राकेश के नाटकों का विश्लेषण बिना किसी पूर्वाग्रह के किया गया है। इसमें स्त्री या पुरूष किसी का पक्ष न लेकर तटस्थ दृष्टि से तथ्यों को उजागर किया गया है। मोहन राकेश के तीनों नाटक समापन में प्रश्न खड़ा करते हैं और अनुत्तरित-सी स्थिति बन जाती है। प्रस्तुत पुस्तक ऐसे अनुत्तरित और अनसुलझे प्रश्नों के संभावित उत्तर और संभावित स्थितियों को भी सामने रखता है।