प्रेम..... इस शब्द में जितनी मिठास है. इसका दर्द उतना ही ज्यादा महसूस होता है. बूढी अम्मा किशोरावस्था से वृद्धावस्था तक इस दर्द को सहती आई है. इनके प्रियतम ने किशोरावस्था, जवानी में तो इसके प्रेम को समझा ही नहीं वृद्धावस्था में भी इनके निश्छल प्रेम ही हत्या कर दी थी. अन्तोत्गत्वा इस दर्द से राहत पाने के लिए. वह अलौकिक शक्तिओ की शरण में जाती है तथा अपने प्राणों की आहुति दे देती है. शायद संसार में प्रेम करने वालों का यही हश्र होता है.