हमारे देश में बहोत से महान शायर हुये हैं। जो भी थोडा बहुत मैंने उन्हे पढा है उसी से सीिकर अपनी#नूर-ए-आफ़ताब* पुस्तक में र्लिने की कोर्शश की है। महान शायरों के आगे मैं ततनका मात्र हूूँ लेककन इस पुस्तक को मैं उन्ही को समर्पित करती हूूँ।
शब्दों के ख़ियाबां में क़लम से निकले फूलों का बागीचा है मेरी पांचवी पुस्तक। इसका नाम है#नूर-ए- आफ़ताब*,,,,,. इससे पहले मेरी चार पुस्तकें : इज़हार, बेटी की पाती, उत्सव : कवीताओं की कुसुमावली और लफ़,मेरा का गुलदस्ता प्रकाशित हो चुकी है । मेरा लेखन मेरे दिल का आईना है। जब भी मेरी चित्कला कोरे कागज़ पर चलती है वह अपने आप ही विषय चुनती है कि क्या लिखा जाये। वैसे मैं स्वतन्त्र लेखन ही पसन्द करती हूँ क्योंकि यहां हम लेखन के भाव को विस्तार देते हैं। लेकिन इस पुस्तक में मैनें गज़लों का संकलन किया है।जो कि कहीं खुबसूरत ज़िन्दगी के अहसास हैं तो कहीं रिश्तों की खुशबू है। कहीं तन्हाईयों का आलम है तो कहीं इश्क की दीवानगी।
उम्मीद करती हूँ आप सभी पाठक गण मेरी पुस्तक#नूर-ए-आफ़ताब*,,, को भी आफ़ताब की तरह चमकायेंगे। धन्यवाद सहित आपकी अपनी उर्मिला श्योकन्द ।