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Raajneeti men Adhyatm / राजनीति में अध्यात्म एक संतुलित और व्यवस्थित राजनैतिक इच्छाशक्ति का व्यक्ति जीवन में अनुप्रवेश

Author Name: Chandan Sukumar Sengupta | Format: Paperback | Genre : Young Adult Nonfiction | Other Details

अगर कोई भक्त अपने ध्येय मार्ग पर ध्यानस्थ होना चाहे तो ऐसी कौन सी बाधा है जो उसे ऐसा करने से रोक सके ? इस विपत्ति को योग दर्शन में विघ्न बताया गया है | चित्त विक्षेप का नाम ही विघ्न है । कुल मिलाकर विघ्न नौ प्रकार है - रोग, अकर्मण्यता, संशय, प्रमाद (योगाभ्यास, प्राणायाम, ध्यान, समाधि आदि के प्रति निरुत्साह), आलस्य (शरीर व मन का भारीपना), विषयासक्ति, भ्रन्तिदर्शन  (विपर्ययज्ञान), भूमि को पाकर भी चित्त का स्थिर न होना । इस प्रकार से विविध बाधाओं को पार करके न उभरने वाला  अभ्यासी आसानी से खुद को भक्ति मार्ग पर टिकाए नहीं रख सकता | 

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चंदन सुकुमार सेनगुप्ता

वेद उपनिषदों में ईश्वर का स्वरूप बताते हुए उसे एक अनुभवजन्य सत्ता के रूप में प्रकाशित किया गया है | उसे ब्रह्म स्वरूप कहा गया है | अनुभव पाने वाले व्यक्ति को भी ब्रह्म स्वरूप ही कहा गया| इसका यह भी अर्थ निकाला जा सकता है कि ब्रह्म स्वरूप का दर्शन हम किसी भी जीवात्मा में कर सकते हैं | अगर ऐसा ही है तो सभी जनों में ऐश्वरिक सत्ता तथा उर्जाओं का दर्शन प्रतिभाषित क्यों नहीं होता है ? यह तो स्वयं ही होना चाहिए था| इसमें भी हमारे सामने सुर- असुर, धर्मी-विधर्मी आदि भेद को प्रतिभाषित किया जाता है ! इसका विज्ञान  किस हद तक तर्क संगत है? क्या सभी जीवात्मा ईश्वर तथा ऐश्वरिक शक्तियों का सान्निध्य पाने की पात्रता रखता है? क्या इसके लिए कोई खास प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है ? अगर है भी तो उसके नीति निर्देशक तत्व कौन कौन से होंगे ? उसे धर्म के साथ जोड़कर देखा जाना कहाँ तक उचित होगा ? 

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