छोड़ो, क्या चाहना वफ़ा तुमसे
क़र्ज़ होते नहीं अदा तुमसे
मेरे चेहरे पे शिकन कोई नहीं
ये तो टूटा है आईना तुमसे
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बन गया जब से साहिब-ए-मसनद
शेर हो जी-हूज़ूर जाता है
चूमता है जबीं को जब याराँ
आत्मा तक सुरूर जाता है
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मनसबों के लिए दस्तार बिछाया ना करो
ज़मीर बेचने बाज़ार में ज़ाया ना करो
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ढलते हुए सूरज का एहतराम किया है
जो तख़्त से उतरे, उन्हें सलाम किया है
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