मनीषी पं. जनार्दनराय नागर द्वारा रचित जगद्गुरु शंकराचार्य उपन्यास श्रृंखला में यह 'शंकर-सन्देश' है। महर्षि बादरायण के सन्देशानुसार शंकर ने सच्चिदानन्द स्वरूप में सन्देश दिया - सच्चिदानन्द ही आत्मा है, परमात्मा है, ज्ञान ही सत् है, चित्त है, आनन्द है, आत्मज्ञान है। जीवात्मा का सत हैं, चित है, आनन्द है, आत्मज्ञान है। जीवात्मा का सत स्वभाव ज्ञान रूप है, ज्ञानमय है, ज्ञान पूर्ण परिपूर्ण है।
आत्मा बहुस्याम जीवन के अनुभव और अपने विभूतिमय सत्य के लिए अज्ञानमय होकर जगत् की रंगभूमि रचता तथा भव-संसार के नाट्य किया करता है किन्तु यह लीला आत्मा की प्रकृति नहीं है, यह आत्मा की अभिलाषा भर है। स्वप्नमयी स्वप्नवत् स्मृति दग्ध आत्मा का स्वभाव सच्चिदानन्द है और यही ज्ञान है, ब्रह्म है- शाश्वत सत्य है। ब्रह्म ही सत्य है। शून्यातीत होना योग का अभीष्ट है, कालातीत होना जीवन का अभीष्ट है और ब्रह्म स्थित होना आत्मा का अभीष्ट है। संज्ञान से उपरत कालातीत होकर जीवन शून्य से परे हो जाता है और अपने वास्तविक स्वरूप ब्रह्म का साक्षात करता है।