ग़ज़लों में हिन्दी का ज़्यादा से ज़्यादा समावेश कर उन्हें और हिंदुस्तानी और सरल क्यों
ना बनाएँ I इस संग्रह में यही प्रयास कि या है I आज़ा दी का अमृत महोत्सव भी चल रहा
है I कु छ ग़ज़लें / गीत ‘हिन्द’ को समर्पित हैं I
बीज बोए हैं रोशनी के यहाँ
कल का सूरज यही से नि कलेगा
पंछियों,आसमान एक नया
हिन्द की सरजमी से निकलेगा
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संदेश देवताओं का ले
जग में हरकारा जाता है
कतरा आता है भारत में
बन कर जलधारा जाता है
पृथ्वी पर भारत दीखे, नभ से
टूट सितारा जाता है
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अगर पत्थर भी आएँगे तो धड़कन ले के जाएँगे
यहाँ तामीर - ए - दि ल का सभी सामान बनता है
सिमट तो गई है ये दुनिया मगर बिखरे हैं सब कुनबे
कोई ये हिंद से सीखे, कै से ख़ानदान बनता है
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