लेखक की क़रीब सौ ग़ज़लों और नज़्मों के इस मेले में ग़ज़ल को ज़िन्दगी में और ज़िन्दगी को ग़ज़ल में उतारने की कोशिश की गई है। ये ग़ज़लें इंसानी ज़िन्दगी के रूहानी पहलुओं को बयाँ करते हुए दस्तावेज हैं। इसमें देशभक्ति और आध्यात्मिक आयामों को भी छुआ गया हैI
बंदूक़ के शोलों ने नहीं इसको सिला है
इस मुल्क के धागे बस मोहब्बत के मिलेंगे
दुनिया का कोई सा भी चमन घूम लीजिए
खिलते गुलाब आपको भारत के मिलेंगे
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माँ की रही, बेटे पे, बचपन में हुकूमत पर
दादी बनी तो उस पर नाती की हुकूमत है
ना तेल, ना ही उसको दिखती दियासलाई
आतिश समझ रही है बाती की हुकूमत है
तुर्बत में उतारे गए जब बादशाह सलामत
मालूम हुआ, माटी पे माटी की हुकूमत है
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