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Tarangini - Part 1 / तरंगिनी - भाग 1

Author Name: Indu Singh | Format: Paperback | Genre : Poetry | Other Details
देखिये * तरंगिनी *, मेरा पहला काव्य संग्रह शान्त, निर्विघ्न, निर्मल, पावन, मनभावन लहराती इठलाती आप पाठकों तक पहुंच गयी. * तरंगिनी *मेरा पहला काव्य संग्रह है, इसमें जीवन और प्रकृति के समस्त रंग अपनी पूरी छटा के साथ समाहित है… श्रृंगार, भक्ति, वीर, प्रेम रस एवं देश प्रेम से ओत प्रोत छन्द पाठकों को मनोहारी लगेगी, यह मेरा विश्वास है... हिन्दी काव्यशास्त्र गहरा सागर है, इसी सागर से मैने चन्द सुन्दर छन्द विधाओं के अनमोल मोती चुन कर *तरंगिनी *में डाले हैं। मैने मात्रिक और वार्णिक दोनो प्रकार के छन्द लिखे हैं जिनमें.... विभिन्न प्रकार के सवैये, घनाक्षरी, पञ्चचामर (सभी वार्णिक) तथा शक्ति, रूपमाला, दोहे, चौपाई, सारललित, हरिगीतिका, गीतिका, कह मुकरी, उल्लाला, ताटक, त्रोटक, कुकुभ, लावणी सभी हैं.... नमन वीणा पाणी को जो मन में भाव भरतीं हैं, वन्दन माँ दुर्गा को जो शक्ति देतीं हैं, पुष्पचन्दन प्रेम प्रतीक राधे कृष्णा को, जय जय महाकाल की... तरंगिनी को काव्यप्लावित करने में फेसबुक का बहुत बड़ा योगदान है, जहाँ 2016 से निरन्तर अपनी रचनायें प्रेषित करती आ रही हूं..... गूगल को धन्यवाद जिससे मैने विभिन्न छन्द विधाएं सीखीं...... आभारी हूं *फेसबुक मित्रों *की जिन्होंने दिल खोल कर मेरे सृजन की सराहना की..... आभारी हूं दीपकमणि जी की, जिन्हें फेसबुक पर मैने '' शायरे-हिन्द '' का ख़िताब दिया है, क्यूंकि वहाँ मेरा पोस्ट दरबारे-ख़ास है और मैं वहाँ की साहिबे आलम। ये तरंगिनी सृजन के अहम प्रेरणा स्त्रोत बने रहे... अपरिमित स्नेह सहित विशेष आभार मेरे प्यारे-प्यारे छोटे बेटे अंकित को, जिसने पुस्तक प्रकाशन में अथक सहयोग प्रदान किया… अन्ततः काव्य संग्रह आपके हाथों में है...... *इन्दु *
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इंदु सिंह

जय माँ शारदे मेरा जन्म 29 फरवरी 1952 को एक सुखी सम्पन्न परिवार में हुआ। बचपन में ही माँ पापा ने मुझे मेरी नानी - स्व. छछन देवी, नाना स्व. राजा प्रसाद सिंह की गोद में डाल दिया, फिर तो नानी माँ का स्नेहिल आँचल और नाना बापू की नेह चादर तले मेरी उड़ानें शुरू...। बड़े लाड़ प्यार में मैं पली बढ़ी। मेरी प्रारम्भिक से मैट्रिक तक की शिक्षा वर्तमान सीतामढ़ी जिले के डुमरा स्थित '' कमला बालिका उच्च विद्यालय '' में सम्पन्न हुयी। 14 वर्ष की उम्र यानि 1966 में में मैनें मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। 1967 में मेरा व्याह सम्पन्न परिवार में हो गया। फिर शुरू हुआ संघर्षों की अनदेखी अनजानी यात्रा,.... शनिदेव ऐसे मेरे पीछे पड़े मानो उन्हें और कोई काम ही नहीं। अनवरत संघर्षों से जूझते अन्ततः 1980 में बी आर ए बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर से *अर्थशास्त्र *विषय में स्नातकोत्तर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्णता मिली.... एम. ए. का परिणाम घोषित होते होते मुझे अपने गृहजिला अर्थात सीतामढ़ी के डुमरा स्थित *रामसेवक सिंह महिला महाविद्यालय *में व्याख्याता पद प्राप्त हो गया, जहाँ 36 वर्षों तक सफलतम सेवा दे कर सन् 28 फरबरी 2017 में *एसोसिएट प्रोफेसर * पद से सेवा निवृत हुयी। मेरा हरा भरा परिवार है, जिसमें दो बेटे.. चन्दन किशोर और अंकित मन्नू, दो बेटियाँ, एक बहू, दो दामाद, तीन नाती, दो नातिन, दो पोतियाँ तथा एक पोता.... सभी मेरी गृह वाटिका के प्यारे न्यारे फूल हैं जो निस्सन्देह मेरे सृजन के प्रेरक हैं। आभारी हूं पतिदेव की जिनका प्रेम और तक़रार दोनों अनन्त है। सबसे बड़ी बात.. माता दुर्गा की कृपा है.. शिवशम्भू का वरदहस्त है... माँ शारदे की वीणा और कान्हा की बंशी है। आज मैं सुखी, समृद्ध, एक सफलतम महिला हूं जिसके भाग्य से कदाचित ईर्ष्या की जा सकती है... काव्य सृजन के अतिरिक्त मेरी अन्य अभिरुचियों में.. संगीत.. नृत्य.. सिलाई-कटाई और चित्रकला है। स्वर्णा भूषण मुझे अत्यधिक पसन्द हैं। रंगो में लाल... फूलों में गुलाब... पोशाक में साड़ी, सलवार सूट और नदी का बहाव मुझे अति प्रिये है। अपने देश भारत.. अपने राज्य बिहार... अपने जिला सीतामढ़ी और अपने शहर सीतामढ़ी पर मुझे गर्व है। सीतामढ़ी का अपना ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है क्योंकि यह जगज्जननी माँ जानकी की जन्मभूमि है..... अन्ततः मेरी जन्मस्थली *डुमराँव *.... मेरा तथाकथित नैहर *धरफरी *.... मेरे बचपन से यौवन तक का मेरा अपना गाँव *रेबासी * जहाँ मेरी नानी माँ और मेरे नाना बापू मेरी सखियाँ सहेलियाँ थीं, .... मेरा ससुराल *बेलसन्ड * तथा मेरी कर्मस्थली *सीतामढ़ी *की माटी को मेरा शत शत नमन..... नाम चन्दा (इन्दु) है पर हम धरा पर उगे ज्ञान दीपक जलाना मेरा काम है नेकी फितरत है, नफ़रत बदी से हमे जाति इन्सान भारत मेरा धाम है बाँटना प्यार अपना है दीनो धरम अपनी तक़दीर पर नाज़ करते हैं हम
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