यह मेरी शायरी का दूसरा संस्करण है, पहला था
‘आपके अल्फ़ाज़’, जिसे मेरे चाहने वाले पाठकों और शुभचिंतकों ने खूब नवाजा । अब यह संस्करण "ये ग़ज़ल, मेरी - नहीं आपकी है " में बहुत अधिक परिपक्वता, व्यवहारवाद, राष्ट्रवाद और इंसानियत
के प्रति इज्जत है। फिर से आपको जज्बात, नज़ाकत, नफ़ासत, लिहाज़, तहज़ीब, लखनवी अदा मिलेगी और मुझे यकीन है कि आप पूरी तरह से अजीब दुनिया में खुद को डुबो कर खुश होंगे।
एक बार फिर कुबूल कीजिये ये नजराना, जिसका नाम है ये गजल मेरी, नहीं आपकी है...