“इख़्तियार” ये सरमाया है प्यार का, उसके खटे-मीठे एहसास का। इसमें कविताओं के माध्यम से कहीं प्यार का इज़हार है तो कहीं टूटे दिल की दास्तान। इसमें दर्द भी है और ख़ुशी का तराना भी।
रिश्तों की गाँठे और उन्हें खोलने का जस्बा है इनमें।
हर पल साथ देने की गुज़ारिश तो नहीं की,
दो पल जो गुजरें साथ, ये खता कोई बड़ी तो नहीं की…
अहसासों का एक ऐसा सफ़र है इश्क़, जिसमें डूबने वाला अक्सर रुसवा हुआ है। मगर मिल जाये सच्ची मुहब्बत तो कहते हैं ना, इस से बड़ी इबादत क्या है। सच्चाई के दायरे और आज की हकीकत के पैमाने में ढूँढने से तो मिल जाये शायद, मगर हर नुक्कड़ में इस इश्क़ की रहनुमाई मिलती कहाँ है। कहीं खुशियों की नाव पर बैठा हुआ एक जोड़ा मिलता है या कहीं छुपा के चेहरा बगीचे में प्यार सरे आम बिकता है।
तो आइए, इस इश्क़, मोहब्बत, प्यार, वफ़ा और दगा इस सफ़र पर चलिए इस कविताओं के सफ़र पर।