बेसबर, बेआबरू है आदमी
किसी का दर्द, किसी की आरज़ू है आदमी
ढूंढ़ता रहता है न जाने क्या बाहर
ख़ुद के भीतर ही तो ठहरता नहीं है आदमी
“ज़िंदगी, इश्क़ और मैं” सिर्फ़ एक काव्य-संग्रह नहीं, बल्कि एक आत्म-यात्रा है, जो इश्क़, ज़िंदगी, समाज और आत्म-खोज की बेचैन यात्राओं को स्वर देता है।एक पल आप किसी की आँखों में डूब जाते हैं, और अगले ही पल भीड़ में खुद को अकेला पाते हैं। यह संग्रह आपको अपने भीतर झाँकने पर मजबूर करेगा—और शायद आपके अँधेरे में भी एक नया सूरज उगा दे।