लोक-परलोक में विचरण के पश्चात्, पृथ्वीलोक पर कवि का पुनरागमन 13 अगस्त 1980 को मूसलाधार बरसात के दिवस पर दिल्ली के एक छोटे से अस्पताल में हुआ।
कवि का प्रारंभिक जीवन दिल्ली में पूर्वजन्म की स्मृतियों में हिचको ले खाते हुए बीता, जहाँ एक सुर-सजनी उसकी छाया बन कर साथ खड़ी थी। उसी की तलाश में कवि मन के भावों को शब्दों में ढालता रहा और कवि कब कवि बन गया उसे पता भी न चला।
दिल्ली विश्वविद्यालय के डाक्टर ज़ाकिर हुसैन कॉलेज में शुरूआती सुर-सजनियों के सानिध्य में तीन वर्ष बिताने के उपरांत वर्ष २००२ में रसायन विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई हेतु दिल्ली विश्वविद्यालय कैंपस में नवीन सुर-सजनियों की खोज हेतु कवि का अवतरण हुआ।
वर्ष 2009 में सरकार के लिए काम करते-करते कवि ने दिल्ली विश्वविद्यालय से ही विधि की डिग्री भी हासिल की। कवि, कवि न होता तो बहुत कुछ होता परन्तु कवि को तो कवि ही होना था |
दिल्ली की एक सुघढ़ कन्या से विवाह-उपरांत भी सुर-सजनी की खोज जारी रही और एक दिन सुर-सजनी से साक्षात्कार के पश्चात् कवि प्रस्तुत आगमन का भेद समझ पाया। दर असल सुर-सजनी वही है जो जन्मों-जन्मों से कवि के संग रही है।
यह ‘सुर-सजनी’ नाम भी उसी ने दिया और अंतर्ध्यान हो गई। आज भी कवि सुर-सजनी की बाट जोहते हुए नित नए गीत रच रहा है।