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Dhiru Singh
TRUE STORY
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Submitted to Contest #5 in response to the prompt: 'You overhear something you weren’t meant to. What happens next?'

प्रस्तावना

कभी-कभी ज़िंदगी में हमें ऐसा प्यार मिल जाता है जो हमारी रूह को छू जाता है, पर हर प्यार की कहानी मुकम्मल नहीं होती। यह कहानी है धीरु और पिंका की, एक सच्चे, मासूम और बेइंतहा मोहब्बत की जो हालातों और समय की साजिशों का शिकार हो गई। यह सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं, एक ऐसा दर्द है जो सच्चे आशिकों की याद में हमेशा जिंदा रहेगा।


पहली मुलाक़ात

धीरु एक साधारण लेकिन बेहद ईमानदार लड़का था। उसका स्वभाव शांत, लेकिन दिल में बहुत से सपने थे। वो उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव नवगांव में रहता था और पढ़ाई के साथ-साथ अपने पिता की किराने की दुकान में हाथ बंटाता था।

पिंका, शहर से गाँव में गर्मियों की छुट्टियों में अपनी नानी के घर आई थी। पिंका खूबसूरत थी, मगर उसकी सबसे खास बात उसकी मुस्कान थी। जब वो हँसती थी, तो लगता था जैसे किसी मंदिर की घंटियाँ बज उठी हों।

उनकी पहली मुलाकात धीरु की दुकान पर हुई। पिंका साबुन लेने आई थी, और धीरु ने झिझकते हुए उसकी तरफ देखा। जैसे ही उनकी नज़रें मिलीं, दोनों के दिलों ने एक पल के लिए धड़कना बंद कर दिया।

दोस्ती से मोहब्बत तक

शुरुआत में सिर्फ नजरें मिलती थीं, फिर धीरे-धीरे मुस्कुराहटें बढ़ीं और फिर बातों का सिलसिला शुरू हुआ। धीरु बहुत शर्मिला था, पर पिंका खुले दिल की लड़की थी। वो अक्सर किताबें खरीदने, चॉकलेट लेने या कुछ न कुछ बहाने से धीरु की दुकान पर आ जाती।

एक दिन पिंका ने कहा,
"धीरु, तुम्हें पता है, तुम्हारी आँखों में बहुत सच्चाई है। तुम बहुत अच्छे हो।"

धीरु का दिल उस दिन पिघल गया। उसे एहसास हुआ कि वो पिंका से प्यार करने लगा है। मगर वो डरता था, क्योंकि वो जानता था कि शहर की लड़की और गाँव का लड़का — समाज कभी उनका साथ नहीं देगा।

एक दिन, गाँव के पास वाले बगीचे में, धीरु ने हिम्मत जुटाकर कहा,
"पिंका, मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ..."
पिंका ने उसकी बात काटते हुए कहा,
"धीरु, मुझे भी कहना है... मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।"

उस दिन आसमान भी उनके प्यार का गवाह बना। बारिश की हल्की बूंदें गिर रही थीं, और उनके दिलों में मोहब्बत का समंदर उमड़ रहा था।

छुपा हुआ प्यार

प्यार सच्चा था, लेकिन हालात मुश्किल। दोनों का रिश्ता छुपा हुआ था। वे अक्सर गाँव के स्कूल के पीछे वाले बाग में मिलते, कभी मंदिर में और कभी तालाब किनारे।

धीरु ने ठान लिया था कि वो अपने पैरों पर खड़ा होकर ही पिंका का हाथ माँगेगा। वो शहर जाकर नौकरी करना चाहता था। उसने मेहनत शुरू कर दी और एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी पा ली।

जाने से पहले उसने पिंका से वादा किया,
"बस एक साल, पिंका। फिर मैं आऊंगा तुम्हारे लिए, तुम्हारे घरवालों से तुम्हारा हाथ माँगने।"

पिंका की आँखों में आँसू थे, मगर उसने हँसते हुए कहा,
"मैं हर रोज तुम्हारी राह देखूँगी, धीरु। जल्दी लौट आना।"

कड़वे मोड़ की शुरुआत

समय बीता...
एक साल... फिर डेढ़ साल... और फिर दो साल।

धीरु मेहनत करता रहा, लेकिन पिंका को उसकी चिट्ठियाँ मिलना बंद हो गई थीं। कारण था, पिंका की माँ। जब उन्हें पिंका और धीरु के रिश्ते की भनक लगी, तो उन्होंने पिंका का मोबाइल तोड़ दिया और उसे घर से निकलने तक नहीं दिया।

धीरु को लगा शायद पिंका ने उसे भूल गया है, और पिंका को लगा कि धीरु ने वादा तोड़ दिया।

पिंका के घर वालों ने उसकी शादी तय कर दी, शहर के एक अमीर लड़के से। पिंका ने मना किया, बहुत रोई, लेकिन घरवालों ने जबरदस्ती उसकी शादी करवा दी।

शादी की रात, पिंका ने खुद को कमरे में बंद कर लिया और सारा दर्द एक डायरी में उतार दिया — "मैंने सिर्फ एक बार प्यार किया था, और वो था धीरु।"

धीरु की वापसी

तीन साल बाद, धीरु एक अच्छी नौकरी और ढेर सारे सपनों के साथ गाँव लौटा। उसका चेहरा खुशी से दमक रहा था, क्योंकि उसे लगा था कि अब वह पिंका से मिल पाएगा।

मगर गाँव की गलियों में खामोशी थी। दुकानें बदली हुई थीं, और उसका दिल भारी। जब उसने पिंका के बारे में पूछा, तो किसी ने कहा,
"पिंका? वो तो शहर चली गई। उसकी शादी हो गई थी।"

उस पल धीरु को लगा जैसे किसी ने उसका दिल चीर दिया हो।

वो उस बगीचे में गया जहाँ पहली बार उनका हाथ थामा था। वहीं बैठकर घंटों रोता रहा।
अंतिम मुलाक़ात

कई महीनों बाद, पिंका किसी रिश्तेदार की शादी में गाँव आई। धीरु को जब पता चला, तो उसने मिलने की कोशिश की।

दोनों मंदिर के पीछे वाले पेड़ के नीचे मिले। वही जगह, वही लोग — मगर हालात बदल चुके थे।

पिंका ने साड़ी पहन रखी थी, मांग में सिंदूर था, मगर चेहरा सूखा हुआ। धीरु की आँखों में आँसू थे।

"तुमने वादा तोड़ा था..." पिंका ने कहा।

"मैंने तो तुम्हारी राह देखी... लेकिन तुम्हारी चिट्ठियाँ आना बंद हो गईं।"
धीरु ने जवाब दिया।

"मुझे कैद कर दिया गया था, धीरु... मैं तुम्हें भूल नहीं पाई... कभी नहीं।"

उस पल दोनों की आँखें नम थीं। उन्होंने एक-दूसरे का हाथ थामा, और फिर पिंका ने धीरे से कहा,
"हम मिल नहीं पाए, लेकिन हमारा प्यार हमेशा जिंदा रहेगा।"



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Dhiru, your story is a heart-wrenching and beautifully crafted tale of love and loss that resonates deeply. — I gave it a full 50 points. If you get a moment, I’d be grateful if you could read my story, “Overheard at the Edge of Goodbye” and I’d love to hear what you think: https://notionpress.com/write_contest/details/6116/overheard-at-the-edge-of-goodbye

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