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Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palइस उपन्यास में राम के वन गमन के पश्चात् भरत एवं शत्रुघ्न को अलौकिक भातृत्व प्रेम की प्रतिमूर्ति के रूप में ही प्रतिष्ठित किया गया है। भरत राम को चित्रकूट मनाने जाते हैं। राम मानते नहीं। अन्त में राम की चरण पादुकाएं राज्य सिंहासन पर रख कर उसकी पूजा करते हैं- एक तपस्वी का जीवन जीते है और शत्रुघ्न परिवार, प्रजा एवं भरत के मध्य कड़ी बन कर राज भी सम्भालते हैं और परिवार भी। रामायण के प्रमुख पात्रों को लेकर लिखा गया यह (राम-राज्य) उपन्यास लेखक के शाब्दिक सामर्थ्य का साक्षात् प्रमाण है। साथ ही ऐसे आध्यात्मिक कथानक में भी राष्ट्रभक्तलेखक भारत की भक्तिनहीं छोड़ते... भरत कहते हैं शत्रुघ्न ! भारत वर्ष में जन्म लेना ही कोटि जन्मों के कोटि पुण्यों का फल है। सार यह है कि प्रस्तुत उपन्यास भारतीय संस्कृति, आर्य परम्पराओं एवं राष्ट्र प्रेम का विषद आख्यान है।
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पं. जनार्दन राय नागर का जन्म उदयपुर में 16 जून, 1911 ई. को हुआ। बहुआयामी प्रतिभा के धनी पं. नागर ने शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता, राजनीति व समाज सेवा आदि क्षेत्रों में अपनी अमिट कीर्ति स्थापित की। गाँधीवादी संस्कारों से दीक्षित व कथा सम्राट प्रेमचन्द्र के आशीष पात्र रहे जनार्दन राय नागर ने मेवाड़ में शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से 1937 में हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना रात्रिकालीन संस्थान के रूप में की। पं. नागर की सतत् तपस्या के परिणाम स्वरूप इस संस्था की उत्तरोत्तर प्रगति हुई। वर्तमान में जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विष्वविद्यालय, उदयपुर रूपी वटवृक्ष के रूप में स्थापित है।
शिक्षा की लोक साधना में लीन जनार्दनराय नागर की ऐकान्तिक साधना साहित्य-सृजन के रूप में निरन्तर गतिमान रही। उन्होंने उपन्यास, कहानी, गद्य-गीत, जीवन चरित्र व काव्य विधाओं में लेखन किया। उनके द्वारा रचित ‘जगद्गुरू शंकराचार्य’ जो कि 5,500 पृष्ठों में समाहित दस उपन्यासों की श्रृंखला है, हिन्दी साहित्य की अमूल्य धरोहर है। उनके ‘राम-राज्य’ के पांच उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। चार गद्य-गीत संग्रह, नागर की कहानियां शीर्षक से दो कथा संग्रह प्रकाशित हुए हैं। उनके नाटक ‘आचार्य चाणक्य’, पतित का स्वर्ग’, ‘ऊदा हत्यारा’, ‘जीवन का सत्य’, अत्यन्त चर्चित रहे तथा मंचित भी हुए।
पत्रकारिता के क्षेत्र में पं. नागर ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं की स्थापना, संपादन व संचालन में योगक्षेम निर्वहन किया। ‘मुधमती’, ‘स्वर मंगला’, ‘नखलिस्तान’, ‘बालहित’, ‘कल्कि’, समाज शिक्षण’, ‘शोध पत्रिका’, ‘वसुन्धरा’, ‘जन मंगल’, ‘जन सन्देश’ व ‘अरावली’ आदि पत्रिकाएं उनकी कीर्ति पताकाएं हैं।
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