You cannot edit this Postr after publishing. Are you sure you want to Publish?
Experience reading like never before
Sign in to continue reading.
"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palडोर क्या है अगर जिंदगी का एक छोटा रूप देखा जाए तो जिंदगी एक रिश्तों की कहानी है और हर रिश्ता एक डोर से बंधा हुआ होता है चाहे वो रिश्ता अपने मां बाप से हो चाहे प्यार का चाहे वह रिश्ता भाई-बहन का हो या दोस्ती का हर रिश्ते में प्यार और विश्वास होना बहुत जरूरी है। नहीं तो कई बार रिश्तों में गांठ पड़ जाती है और वह डोर जो हम बांध कर रिश्ते को आगे बढ़ते है, वह कुछ पलों में ही बिखर जाती है। डोर किताब ऐसे ही कुछ रिश्तों की कहानी है जिसमें एक छोटी सी कोशिश की गई है कि रिश्तों के मायनों को समझाने की जरूरी नहीं कि रिश्ते खून से ही बने हो कई बार रिश्ते आत्मविश्वास के भी होते है, तो कभी इंसानियत के भी कभी रिश्ते मेहनत से बन जाते है तो कभी अपने पन से।
डोर एक ऐसा धागा है जिसमें हर रिश्ता बंधा हुआ है
जरा सी आट आ जाए तो रिश्ते बिखर जाए
जरा सी गांठ आ जाए तो भरोसे बिखर जाए
इन्हीं रिश्तों और भरोसे की कहानी है डोर
एक प्यार की विश्वास की।।
It looks like you’ve already submitted a review for this book.
Write your review for this book (optional)
Review Deleted
Your review has been deleted and won’t appear on the book anymore.रतिमा भारद्वाज
राजस्थान के जयपुर शहर की रहने वाली रतिमा भारद्वाज पेशे से शिक्षिका हैं। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से राजनीति विज्ञान में अपना स्नातकोत्तर पूरा किया और महारानी कॉलेज, जयपुर से स्नातक किया। वह वर्तमान में अनंता ग्रुप ऑफ स्कूल में पढ़ा रही हैं। इन सबके अलावा, वह सामाजिक मुद्दों पर एक सर्वश्रेष्ठ युवा लेखिका है। समाज के मुद्दों पर उनकी कमान सराहनीय है। जब भी उन्हें मौका मिलता है, वह बुराइयों के खिलाफ बोलती है। न केवल उनके लेखन के माध्यम से, बल्कि उनके स्केचिंग और पेंटिंग कौशल के माध्यम से, वह हमारी समाज में मौजूद वास्तविक मुद्दों को चित्रित करती हैं। उनका सपना एक एनजीओ खोलने का भी है जहां जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दी जा सके,अपने शौक के रूप में, वह छात्रों को पढ़ाना, फिल्में देखना और गाने सुनना पसंद करती हैं। वह "ज़िकर-ए-जज्बात 2.0" वह वीरांगना जैसी पुस्तको की सह-लेखक भी रही हैं। "डोर" के रूप में उनकी पहली एकल पुस्तक भी इस बात का एक उदाहरण है कि वह समाज के बारे में क्या सोचती है। वह आपके लिए एक पूरी तरह से अलग विचार प्रक्रिया प्रस्तुत करती है, जहाँ हर शब्द आपको अगला शब्द पढ़ने के लिए मजबूर करेगा।
The items in your Cart will be deleted, click ok to proceed.