You cannot edit this Postr after publishing. Are you sure you want to Publish?
Experience reading like never before
Sign in to continue reading.
"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palइस पुस्तक को लिखने का उदेश्य अन्तरिक्ष के गर्भ में छिपी हुई भारत की बीस हजार वर्ष की गौरवशाली विरासत को भारत वासियों और विश्व के लोगों से अवगत कराना है । वैज्ञानिकों और ऋषियों मे इस बात पर सहमति है कि पृथ्वी निर्माण के उपरान्त इस धरा पर अब तक सूर्यमण्डल का आकाश गंगा की गति की स्थिति के कारण पांच हिम युग (आइस एज) बीत चुके है। पांचवा और अन्तिम हिमकाल जिसका अन्त 17000 बीसी में हुआ तब से लेकर वर्तमान भारतीय संस्कृति के इतिहास मे हमारे ऋषियों ने अपनी सोच और मुक्त चिंतन द्वारा हिंदू धर्म के इतिहास मे बहुतेरे नग जोड़े हैं।
हमारे ऋषियों ने दसावतार पुराणों द्वारा डार्विन विकासवाद के हजारों वर्ष पूर्व पृथ्वी पर जीव उत्पत्ति जैसे गंभीर प्रश्न का समाधान प्रकट किया। वर्तमान ऋषियों में विशेषकर महर्षि अरविन्द ने अपने अतिमानस वाद का सिद्धान्त उपस्थित कर इस सोच को और आगे बढाया।
हिमकाल के अन्त के साथ ही 17000 बीसी वर्ष पूर्व हमारे महर्षि अन्गिरस आदि मानव मनु, भृगु, भारद्वाज ने सृष्टि और भारतीय संस्कृति की खोज प्रारम्भ कर दी थी। भृगु ऋषि विश्व में पहले महर्षि थे जिन्होंने पृथ्वी के जीवों पर पड़ने वाले प्रभाव कों सूर्य मण्डल और नक्षत्रों के प्रभाव से जोडा और ज्योतिष तथा खगोल शास्त्र जैसे ग़ूढ विषय की नीवं डाली ।
हमारी सांस्कृतिक इतिहास की गंगा का अविरल प्रवाह सृष्टि के प्रारम्भ से बहता रहा है। बाहर से आये मध्य एशिया विशेषकर कुषाण सम्राट कनिष्क ने भारतीय ऋषियों की सोच को बढावा दिया और पहली सदी में कुषाण सम्राट कनिष्क ने आश्वघोष नागार्जुन, चरक जैसे विद्वानों को आगे बढाया जिनका नाम इतिहास मे स्वर्ण अक्षरों मे लिखा गया है।
It looks like you’ve already submitted a review for this book.
Write your review for this book (optional)
Review Deleted
Your review has been deleted and won’t appear on the book anymore.लाल मणि ओझा
लेखक लालमणी ओझा विज्ञान के विद्यार्थी होते हुए उनकी रूचि घर के अध्यात्मिक वातावरण के कारण अपने धर्म के महान इतिहास को जानने और उस ज्ञान को लोगों तक पहुंचाने में रही हैं।
इसके पूर्व लेखक ने अपनी दो लिखी पुस्तकों पर अपने चिन्तन और सोच की छाप छोडी है। उनकी पहली पुस्तक “इस्पात की कहानी” है, जिसमें औद्योगिक क्रान्ति के पूर्व हमारे ऋषियों ने इस्पात खोज कर ली थी इसका विवरण दिया है ।
दूसरी पुस्तक “अन्तरिक्ष में मानव” के बढता कदम है। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति और सूर्य माडल की परिधि से बाहर निकल कर सृष्टि की खोज के प्रयास का विवरण है ।
यह तीसरी शोधपूर्ण पुस्तक मे भारत के महान गौरव शाली इतिहास का विवरण तथ्यों पर आधारित 20 हजार वर्ष के भारतीय संस्कृति के इतिहास का विवेचन है जो कि बहुत कम भारतीयों को ज्ञात है। इस पुस्तक में मेरे सुपुत्र पीयूष चन्द्र ओझा का बडा योगदान रहा है जो कि इन्जीनियर होते हुए होते कई आध्यात्मिक संस्थाओं से जुडें हुए है।
The items in your Cart will be deleted, click ok to proceed.