You cannot edit this Postr after publishing. Are you sure you want to Publish?
Experience reading like never before
Sign in to continue reading.
"It was a wonderful experience interacting with you and appreciate the way you have planned and executed the whole publication process within the agreed timelines.”
Subrat SaurabhAuthor of Kuch Woh Palविषय- सूची
काल, युग बोध एवं अवतार
ऋषि और लव कुश सिंह “विश्वमानव”
विद्रोही या सार्वजनिक प्रमाणित कृष्णकला समाहित विश्वमानव कला
भाग-1 : आविष्कार और आविष्कारक का संक्षिन्त परिचय
आविष्कार क्यों हुआ?
आविष्कारक कौन है?
क. भौतिक रूप से
ख. आर्थिक रूप से
ग. मानसिक रूप से
घ. नाम रूप से
च. समय रूप से
आविष्कार विषय क्या है?
आविष्कार की उपयोगिता क्या है?
आविष्कार किस प्रकार हुआ?
भाग-2 : लव कुश सिंह “विश्वमानव”
ईश्वर चक्र (सार्वभौम सत्य सिद्धान्त)
विश्वशास्त्र - विषय-प्रवेश
विश्वशास्त्र - अध्याय-एक : ईश्वर
जीवन परिचय
विश्वशास्त्र - अध्याय-दो : जीवन परिचय
ज्ञान परिचय
विश्वशास्त्र - अध्याय-तीन : ज्ञान परिचय
कर्म परिचय
विश्वशास्त्र - अध्याय-चार : कर्म परिचय (सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य महायज्ञ)
विश्वरूप
विश्वशास्त्र - अध्याय-पाँच : सार्वजनिक प्रमाणित विश्वरूप
विश्वशास्त्र - परिशिष्ट, विषय- सूची
भाग-3
प्रारम्भ के पहले दिव्य-दृष्टि
सन् 2020 ई0 - मन का नवीनीकरण
ईश्वरीय समाज
विश्व-नागरिक धर्म का धर्मयुक्त धर्मशास्त्र - कर्मवेद: प्रथम, अन्तिम तथा पंचम वेदीय श्रृंखला
विश्व-राज्य धर्म का धर्मनिरपेक्ष धर्मशास्त्र - विश्वमानक शून्य-मन की गुणवत्ता का विश्वमानक (WS-0) श्रृंखला
प्राकृतिक सत्य मिशन
विश्वधर्म मन्दिर
सत्यकाशी ब्रह्माण्डीय एकात्म विज्ञान विश्वविद्यालय
“सत्यकाशी महायोजना” (वाराणसी-विन्ध्याचल-शिवद्वार-सोनभद्र के बीच का क्षेत्र)
विश्व का मूल मन्त्र-“जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान-जय ज्ञान-जय कर्मज्ञान”
एक विश्व - श्रेष्ठ विश्व के निर्माण के लिए आवश्यक कार्य
भाग-4 : सत्य आमंत्रण
पाँचवें युग - स्वर्णयुग में प्रवेश का आमंत्रण
It looks like you’ve already submitted a review for this book.
Write your review for this book (optional)
Review Deleted
Your review has been deleted and won’t appear on the book anymore.लव कुश सिंह “विश्वमानव”
कल्कि महाअवतार के रूप में स्वयं को प्रकट करते श्री लव कुश सिंह “विश्वमानव” द्वारा प्रकटीकृत ज्ञान-कर्मज्ञान न तो किसी के मार्गदर्शन से है और न ही शैक्षिक विषय के रूप में उनका विषय रहा है। न तो वे किसी पद पर कभी सेवारत रहे, न ही किसी राजनीतिक-धार्मिक संस्था के सदस्य रहे। एक नागरिक का अपने विश्व-राष्ट्र के प्रति कत्र्तव्य के वे सर्वोच्च उदाहरण हैं। साथ ही राष्ट्रीय बौद्धिक क्षमता के प्रतीक हैं।
The items in your Cart will be deleted, click ok to proceed.