असीम आकाश में कभी-कभी दृष्टिगोचर होते, इन्द्र-धनुष में समाहित अगणित रंगों की भाँति, सुख-दुख, रोमांस, प्यार और खुशी तथा कष्ट एवं शोक के मिले जुले पलों में भाव-विभोर या भाव-विह्वल कर देने वाली विभिन्न अनुभूतियों और एहसासों से भरे, नारी-जीवन के भी अनेक आयाम हैं।
वामा का अर्थ होता है स्त्री या नारी। वास्तविक जीवन में अनुभूत, नारी-जीवन के विभिन्न आयामों को, दर्पण की भाँति समाज के सम्मुख रखने का प्रयास है “वामा का इन्द्रधनुष”। इक्कीस कहानियों के इस संकलन में हर उम्र, हर वर्ग के नारी जीवन के विविध पहलुओं का दर्शन होता है।
“होली” कहानी में वर्णित रियासत की ‘रानी साहिबा’ से लेकर, परिवार की दयनीय आर्थिक स्थिति के चलते, परिवार के जीवनयापन हेतु, परिवार से ही मीलों दूर रहकर कमाने के लिये अभिशप्त “कांता” कहानी की नायिका तक.....
परंपरा और रूढ़ियों में बँधे पितृ-सत्तात्मक समाज में, आज से साठ-सत्तर वर्ष पूर्व संघर्ष-रत नारी की व्यथा को दर्शाती, “पीला सिंदूर” और “तबला” कहानियों की नायिकाओं से लेकर, “टिमटिमाते तारे” और “काव्या” की नायिकाओं जैसी आधुनिक नारी तक.....
भारतीय सामाजिक परिवेश की लगभग सत्तर साल पहले की अवधि से लेकर वर्तमान समय तक फैली पृष्ठभूमि पर आधारित, इस संग्रह के विभिन्न कथानक, पुरुष के प्रति स्त्री-मन में विलोड़ित होते तीव्र प्राकृतिक दैहिक आकर्षण के साथ, नारी जीवन में घुले-मिले विविध इन्द्र-धनुषी रंग, संवेदनशील पाठकों के हृदय को छू जाने में सफ़ल रहेंगे और उन्हें नारी जीवन की समस्याओं और नारी-उत्थान के विषय में सोचने पर विवश कर देंगे।
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