धर्मेश सर पढ़ाने के लिए अपनी नई खोज- शब्दों की चाय, की प्रतियोगिता करवाते हैं। मोहन इस बारे में नहीं जानता है। धर्मेश सर इस प्रतियोगिता के बारे में उसे बताते हैं। तभी उसे मालूम होता है कि सोनाक्षी की बोलती पुस्तक- कविता के रंगीन बुक, कक्षा से चोरी हो गई है।
यहीं से उपन्यास में जिज्ञासा का प्रवाह शुरू होता है। इसी के साथ अनेक जिज्ञासाएं उपन्यास के हरेक भाग के प्रारंभ में आती है और अंत में उसका समाधान हो जाता है। मगर बोलती पुस्तक- कविता की रंगीन बुक, के चोरी का पता अंत में चलता है।