जीवन की सच्चाइयों की मनोरंजक प्रस्तुति है, एकांकी या नाटक। ये हमें जीवन से जोड़कर रखते हैं। चाहे कोई बच्चा हो, युवा हो या कोई वयोवृद्ध, ड्रामा सभी को, अपने-अपने तरह से आकृष्ट करने की क्षमता रखता है। सामाजिक परिवेश से मिली सुगम अथवा दुर्गम परिस्थितियाँ मनुष्य को अभिनय की ओर ले जाती हैं और एक कलाकार उसी के भावों को अभिनीत करता है।
एक एकांकी कार को तरह-तरह के एकांकी लिखने का अवसर प्राप्त होता है वह कभी समाजसुधारक तो कभी व्यंग्यकार के रूप में प्रहारक व मारक की भूमिकाएँ निभाता है। कभी वो दुख, क्षोभ, क्रोध को अपनाता है तो कभी अवसाद व ज्ञान-विज्ञान, मनोविज्ञान आदि का सहारा लेकर अपने एकांकी का सृजन करता है।
वास्तव में एकांकी दो धारी तलवार के समान कार्य करते हैं एक तरफ तो वह दर्शकों व पाठकों का भरपूर मनोरंजन करते हैं तो दूसरी ओर यही एकांकी लोगों को समसामयिक परिस्थितियों को लेकर सोचने पर बाध्य भी करते हैं।
मेरे नाटकों में वर्तमान में चल रहे अनुचित कृत्यों व समस्याओं को स्थान दिया गया है फिर चाहें ये एकांकी विद्यालयी स्तर पर देखे या पढ़े जायें या युवाओं व जनसाधारण द्वारा। ये सभी के मानस पटल पर एक प्रश्न चिन्ह छोड़ने वाले समस्या उन्मूलक एकांकी हैं।
प्रस्तुत एकांकी अत्यन्त सरल व सुबोध भाषा में लिखे गये हैं, जिससे स्कूलों, कॉलेजों में किये जाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में इनसे जीवन की सीख मिल सके व युवाओं में संवाद कुशलता का निर्माण किया जा सके। इस पुस्तक के सभी एकांकी, सभी वर्गों के व्यक्तियों के लिए "पाथेय" बनने में सक्षम हैं।
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