कलावत के एल द्वारा लिखित हास्य नाटक में सुहागरात के दिन पति और पत्नी अपनी विशेष रात मनाते है। इस दिन पति द्वारा पत्नी का घूँघट उठाया जाता है। घूँघट उठाने पर पत्नी को तोहफा प्रदान करने की प्रथा है। पति जब घूँघट उठाता है तब कई स्थितियॉं उत्पन्न होती है और घूँघट उठते उठते रह जाता है। परन्तु समय बीतता हुआ देखकर पत्नी स्वयं ही घूँघट उठाने के पीछे पड़ जाती है और कहती है कि घूँघट उठाओ जांनू। इसके बाद भी कई नाटकीय मोड़ से होते हुये अन्ततः पति पत्नी का घूँघट उठा लेता है और कहानी का अन्त होता है।