एक मध्यम वर्गीय परिवार में बेटियों के लिये अधिकतर यही सोच होती, कि पढ़ाई पूरी कर जल्दी-से-जल्दी विवाह कर दो ।
मैंने भी समाज शास्त्र में M.A. कर लिया । अच्छे वर की तलाश जारी थी । उस बीच यह तय हुआ जब तक सुयोग्य वर नहीं मिलता घर बैठने से अच्छा है लखनऊ विश्वविद्दालय से राजनीति शास्त्र में M.A. कर लो । M.A. प्रथम वर्ष में ही सुयोग्य वर की तलाश पूरी हुई । विवाह हो गया । बड़ा परिवार था । विश्वविद्दालय जाना छुट गया । परिवार में रह कर थोड़ा सा समय अपने लिये मिलता । उसका सबसे अच्छा उपयोग यही समझ में आया, क्यों न कुछ लिखा जाये ।
हम सभी के आस - पास कुछ-न-कुछ घटता रहता है ।
हम और आप इसे अनदेखा नहीं कर पाते । हाँ, उन सुनी-देखी घटनाओं को सिगरेट के धुएं की भांति उड़ा अवश्य देते हैं ।
कभी – कभी कोई घटना ह्रदय के किसी कोने को कचोट अवश्य जाती है । ऐसी ही किसी घटना या सोच को शब्दों का जामा पहनाना ही मेरा काम हो गया । इस प्रकार वह घटना या सोच फिर हमारी कहानी का रूप ले लेती ।
लेखिका ने ‘QISSE’, ‘KUCH QISSE’ और अन्य पुस्तकें लिखी हैं, जो हिंदी में लघु कहानियों के संग्रह हैं और पहले प्रकाशित हो चुकी हैं।
सामाजिक, पारवारिक घटनायें ही हमारे, आपके जीवन के विचारों को, मानसिकता को यहाँ तक कि हमारे संस्कारों को, हमारे ज़मीर को भी कभी – कभी झकझोर कर रख देती हैं । मेरा यही प्रयास रहता है । अभिव्यक्ति आडम्बर हीन हो और सरलता से कहानी पूर्ण हो जाये । आकार में छोटी हो या बड़ी, फर्क नहीं पड़ता । यह भी प्रयास रहता है कि कहानी में मेरी ओर से उपदेश और आदर्श ना हो । बिना किसी बनाव - श्रृंगार के पूरी सच्चाई और ईमानदारी से समाज में घटी घटनाओं को, अपने मन की उड़ान को, अपनी कल्पना, अपनी सोंच को सरल भाषा में कहानी का रूप देकर प्रस्तुत करूं ।
किरन मनोज
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