कोई कहे की प्रेम नहीं छिछोरापन है, कोई कहे प्रेम नहीं वासना है, कोई कहे प्रेम तो वतन से करो, कोई कहे मां बाप से करो, कोई कहे शादी के बाद करो ,कोई कहे धोखा है, कोई कहे सत्य है, कोई कहे ईश्वरीय अनुभूति है, कोई कहता है कि 'प्यार दोस्ती है' कोई कहे 'केमिकल लोचा' तो कोई मानसिक बीमारी भी मानता है। इस पुस्तक में भी आपको इसके अलग अलग रूप अलग अलग कोण से देखने को मिलेंगे ,कुछ को देखने के लिए शायद कई कोण एक साथ बनाने पड़ें, या फिर सही और गलत का निश्चय करना कठिन हो जाए। प्रेम की समझ आयु और अनुभव के अनुसार बदलती रहती है। प्लूटॉनिक, कैमिकल, उपयोगितावादी, रहस्यवादी, अधिकारवादी, समझौतावादी में से प्रेम के जिस भी रूप को आप आदर्श मानें लेकिन इन सब रूप का सामना कभी ना कभी हो ही जाता है।
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