श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय संस्कृति में एक ऊँचा स्थान रखती है। कुरुक्षेत्र के मैदान में कृष्ण और अर्जुन के बीच का यह संवाद भारतीय दर्शन की मानो एक सम्पूर्ण अभिव्यक्ति है। जीवन में संघर्ष है और युद्ध की स्थिति संघर्ष की पराकाष्ठा है। अगर युद्ध अपनों के बीच हो तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। अर्जुन इसी परिस्थिति में है। उसके सामने वो हैं जिनकी अंगुली पकड़कर उसने चलना सीखा है। उसका असमंजस, उसकी पीड़ा स्वाभाविक है; उसके प्रश्न उचित हैं। उसे तलाश है ऐसे गुरु की जो उसको इस अवसाद से निकाल सके। कृष्ण इस भूमिका को निभाते हैं और उसे अवसाद से निकालकर उस स्थिति तक पहुंचाते हैं कि वह स्वधर्म और स्वाध्याय के मार्ग पर चलने के लिए तैयार हो जाता है। जो संवाद युद्ध की स्थिति में मार्ग दिखा सकता है वह समाज में हर व्यक्ति को उसके व्यक्तिगत संघर्ष में, अवसाद में अवश्य ही मार्ग दिखा सकता है। गीता की महत्ता इसी कारण ज्यादा है कि वह पर्वत की गुफाओं में बैठे किसी तपस्वी का दर्शन नहीं है बल्कि संघर्ष के बीच से निकला दर्शन है। इसीलिए इसकी वास्तविक जीवन में अधिक सार्थकता है। यह पुस्तक इस दर्शन को सरल भाषा और रोचक दोहा शैली में आम पाठक तक पहुँचाने का एक प्रयास है।
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