चुलबुलापन यानी बच्चों की पल-पल की जाने वाली रोचक गतिविधियां होती हैं। यह गतिविधियां हमें मन ही मन भाती, सुहाती, आनंद देती और रिझाती हैं। इसे देखने और सुनने को मन ललचाता है। यदि इस गतिविधियों के साथ बच्चा बातूनी हो तो उसमें रोचकता का पुट ओर ज्यादा बढ़ जाता है।
अक्सर बातें दोहराने वाले बच्चों में चुलबुलापन ज्यादा होता है। वह बड़ों की बातें दोहराने के साथ-साथ अपने भाव का उसमें सम्मिश्रण कर देते हैं। इससे सुनने वाले का आनंद ओर बढ़ जाता है। मुझे याद आता है। दादाजी ने अपने पुत्र को आवाज दी थी- राहुल! इधर आना।
पोती वही खड़ी थी। वह चुलबुली थी। उसने वही बात दोहरा दी- राहुल! इधर आना। पानी भी लाना। उसने अपने भाव को इस में मिला दिया था। दादाजी को ज्यादा लाड़ आया। वही मम्मीजी ने कहा- अरे! ऐसा नहीं बोलते। वह तेरे पापाजी है।
तो? उसने कहा तो मम्मीजी बोली- पापाजी आओ ना। ऐसा बोलते हैं। तब उसने दादाजी से कहा- आप तो बोल रहे थे। राहुल! किधर आना। तब दादाजी ने हंसकर कहा- वह मेरा पुत्र है इसलिए बोल सकता हूं। तब वह बड़े मासूम ढंग से बोली- तब तो वो मेरे पापाजी हैं। मेरे पापाजी को मैं भी बोल सकती हूं।
इस चुलबुलेपन पर हमसब खूब हँसें। यानी जिस चुलबुलेपन में हंसी-मजाक, आनंद, जिज्ञासा, ज्ञान और उद्देश्य हो वह आनंददायक होता है। यदि यह सब कहानी में होंगे तो उसे चुलबुलेपन की कहानी कह सकते हैं। ऐसी कहानियां इस संग्रह में आपको मिलेगी। वे आपका मनोरंजन करेगी। आपको आनंद देगी। आपको जाने-अनजाने बहुत कुछ सिखाएगी भी। इसलिए इसकी कहानियों को चुलबुलेपन की कहानी नाम दिया गया है।